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Vikas Sharma Daksh

Romance

3  

Vikas Sharma Daksh

Romance

बदनाम

बदनाम

1 min
247


नींदों का इसमें कोई है कसूर नहीं,

मेरे ख्वाबों का टूटा है गरुर नहीं।


रोज़ पीते हैं और रोज़ उतर जाती है,

साकी तेरी शराबों में है सरूर नहीं।


वक़्त मेरे ज़ब्त का इम्तिहाँ ना ले,

बेज़ार है दिल मेरा, है मजबूर नहीं।


यादों की गठरियाँ उठाये फिरता हूँ,

इश्क में भूलने का है दस्तूर नहीं।


मत समझ कि किसी रोज़ उतरेगा,

इक जुनून है इश्क, है फितूर नहीं।


लाख फासले हों अब दरम्याँ हमारे,

करीब है तू मेरे दिल के, है दूर नहीं।


‘दक्ष’ का ज़िक्र है हर बज़्म में अब,

वो सिरे का बदनाम, है मशहूर नहीं।


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