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Manisha Kumar

Abstract

4  

Manisha Kumar

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बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते

2 mins
400


बदल गया है जमाना, 

या फिर रिश्तों के रूप बदल गए हैं 

उँगली पकड़ कर चलना सिखाया था जिनको

अब वही मेरा सहारा बन गए हैं 

 मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं 

कर कर के जो शरारत, थे दिन भर मुझे सताते

अब एक आह पर मेरी, हैं दौड़े चले आते, 

कहने वाले माँ मुझे जैसे

मेरे ही संरक्षक बन गए हैं 

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं 


मैं कहती थी उठो सवेरे

दौड़ लगाओ या व्यायाम करो

ये कहते हैं बाहर बहुत सर्दी है माँ 

सुबह इतनी जल्दी न उठा करो

मैंने सदा कहा कि न बैठो यूँ ही खाली,

पढ़ो या कुछ काम करो

ये कहते है पैर सूज जायेंगे 

चलो अब आराम करो

टोका करती थी इनको इधर उधर भटकने 

या दोस्तों से गप्पे लड़ाने पर

ये कहते हैं बाहर टहलो और 

कुछ समय दोस्तों के संग बिताया करो

मैं कहती थी इनको, चलो अब करो पढ़ाई

ये याद दिलाते मुझको, खानी है अभी दवाई

लगता है जैसे ये ही मेरे दोस्त 

और सलाहकार बन गये हैं 

मेरे बच्चे अब बड़े हो गये हैं 


मैं कहती थी बंद करो टीवी, 

इसमें न जाने क्या क्या दिखलाते हैं 

ये कहते हैं अच्छी मूवी आई है

चलो देख कर आते हैं 

मैं कहती थी छोड़ो पिज्जा, बर्गर

घर का बना ही खाओ

और ये कहते हैं ये मुझसे क्या खाना है बतलाओ 

जमाने के डर से बंदिशें लगाती थी इनपर

और ये कहते हैं मुझसे 

जो अच्छा लगे करो वो

दुनिया को भूल जाओ

छुप जाया करते थे डर के, जो कभी मेरे पीछे 

आज बन के ढाल मेरी खड़े हो गए हैं। 

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है



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