बदलता एक सच ....
बदलता एक सच ....
शून्य से शुरू होगा फिर एक बार संसार ,
फिर होड़ लगी होगी पहले आने की एक बार
फिर कुछ नया गणित लगाएंगे
कुछ अपने कर्तव्यों का जोड़ करेंगे ,
कुछ अपने अवगुणो को घटाएंगे
कुछ अपने दान का गुणा करेंगे
तो कुछ अपने गुणों का भाग लगाएंगे
धीरे- धीरे बढ़ते- बढ़ते सौं अंको तक जायेंगे
कुछ पहुंच चरम पर उसमें वर्ग सजायेंगे
इसी तरह सब अपने कर्म कर महा अंक का नया गणित बनाएंगे
अपने आत्मविश्वास का घन कर जीवन सफल बनायेंगे।