बदले सुर शहनाई के
बदले सुर शहनाई के
शहनाई की आवाज़ ,लिखने चली नई कहानी
मंगल परिणय की साक्षी बनी ,शाम ये सुहानी,
वर वधू घर परिजन सब उल्लास से झूम रहे
स्नेह बरसानें आसमान से तारे भी देखो उतर रहे ,
जब होने लगी बिदाई तो आई लेनदेन की बारी
कितने तौले से भरी है पेटी , बहु क्या संग लाई?
सदियों पुराना प्रश्न देखो आज भी दोहराया है
क्या वधू काफ़ी नहीं जो धन भी मंगवाया है?
अपनी श्रद्धा से पिता ने खुशी खुशी खातिर की है
क्या वर ख़ुद नहीं कमाता ,जो ये मांग साथ लाए हो?
"तब वो हुआ जो न था कभी अपेक्षित .."
वर ने यूं थामा हाथ वधू का करा सबसे पार
पिता से जाकर बोला देखो स्वयं लक्ष्मी अपार,
हुआ है सत्कार मान सम्मान सबका भरपूर
करें आभार सभी का लें बिदाई यहां से दूर,
यूं जकड़कर इस कुरीति से क्यूं सब बंदी बने हैं
देखो आज सभी घर में वर वधू दोनों कमा रहे हैं,
यूं बदले सुर शहनाई के ढोल सारे बजने लगे
स्नेहाशीष देकर मात पिता बेटी विदा करने लगे।