बदलाव का चलन
बदलाव का चलन


हर कोई कभी अपनी ज़रूरत तो
कभी इच्छा अनुसार बदलाव चाहता है
लेकिन बदलाव का सही चलन क्या है
ये कहाँ कोई समझना चाहता है
बस हर बदलाव को पाने को
एक नया सहारा खोजना चाहता है
जो सही बदलाव ना आने पर
नाकामयाबी का बोझ उठाता है
इस हसीन चाह की मृग्तृष्णा में
भटकता शक्स ये भूल जाता है
की किसी भी बदलाव को लाने में
उसका अंतर मन अहम भूमिका
निभाता है
बस एक बार खुद को बदल कर
देखो यारों
अपनी प्यारी दुनिया में बदलाव खुद
नज़र आ जाता है