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Sujata Kale

Abstract

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Sujata Kale

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बदल जाओ, संभल जाओ

बदल जाओ, संभल जाओ

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कौन जगत में आया ?

किनके संग मैं आया हूँ ?

ये मानव हैं या मानव आदि ?

कौन मुश्किल में आया हूँ।


क्या रहन सहन है लोगों का,

पुरातन काल में जीते हैं।

हम चाँद पर जाकर ठहरे हैं,

ये आज भी मशाल जलाते हैं।


हम अंतरिक्ष के वासी हैं,

हम निवास यान में करते हैं।

इन बाणों को हाथ लिए,

ये कैसी शिकार करते हैं।


बदल जाओ, संभल जाओ,

कदम मिलाकर दुनिया संग।

विकसित अगर होना हैं,

तुम रंग जाओ हमारे रंग।


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