बड़ी उम्र की औरतें
बड़ी उम्र की औरतें
बड़ी उमर की औरतें जानती है फर्क
इश्क मुश्क प्यार व्यार व्यापार सब में
इसलिए चाहती हैं शीशे सी मोहब्बत
जीना चाहती हैं बचे खुचे लम्हों को
पर कौन देता है तवज्जो उन सफेदी भरे बालों को
कौन झांकता है झुर्रियों से परे आंखों की गहराई में
कौन रखना चाहता है फोहा उनके ज़ख्मों पर
कौन छूना चाहता है मन की तरंगों को
दिखता है तो लोगों को बस झुर्रियों से भरा जिस्म
नहीं दिखाई देती तो बस वो जिजीविषा से भरी रूह
नहीं समझ पाता कोई उनके मन को, नहीं छू पाता कोई रूह को
तो चिड़चिड़ी सी कर्कशा सी हो जाती हैं वो प्रौढ़ा ।
