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Nitu Rathore Rathore

Abstract Others Children

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Nitu Rathore Rathore

Abstract Others Children

बचपन

बचपन

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बचपन लौट न आना था


बाली थी उमरिया 

कर दी विदाई

क्या थी मैं पराई।


मीठी सी मेरी बोली थी

झरनों सी में बहती थी

सितारों सी चमकती थी

यौवन ने ली अंगड़ाई

क्या थी मैं पराई ।


चाँद सा मेरा मुखड़ा था

रँग - रूप भी सजीला था

चंचल मन हठीला था

हाथों में क्यों मेहँदी रचाई

क्या थी मैं पराई।


खुला दिल का दरवाज़ा था

बाली उमरिया को जाना था

बचपन लौट न आना था

सह न सकूँगी सबसे जुदाई

क्या थी मैं पराई।


बाबुल का घर छूट रहा है

देखो रिश्ता टूट रहा है

मन फुट-फुट के रो रहा है

जीवन ज्योत मुझ से न जलाई

क्या थी में पराई।


मैं भी करती नाम रोशन तेरा

दूर करती घर का अमावस अँधेरा

रहती हरदम ख़ुश दमकता चेहरा

न होती अँखियाँ आँसू भरी

क्या थी मैं पराई।



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