बचपन
बचपन
खेलकूद में बीता बचपन ,
ना थी मन में कोई उलझन
एक रुपए में आती थी टॉफी चार ,
खरीदते थे बाजार जा कर बार-बार
स्टील के टिफिन में आलू और आम का अचार,
रेसेस में मिलकर खाते थे सब यार
जब कभी मम्मी को होता था बुखार और लंच नहीं होता था तैयार,
कैंटीन की पांच रुपए की पेटीज लगती थी मजेदार
कॉपी में ए ग्रेड , गुड ,वैरी गुड की गिनती करते थे ,
”मेरे तुझसे ज्यादा है” यह कह कर ही खूब खु
श हो लेते थे
जब आने वाली होती थी अपनी पढने की बारी,
तब साथ वाले से पूछते थे ” कौन सी वाली लाइन पर हैं यार ”
उसी शब्द पर उंगली रखकर कर लेते थे तैयारी
कभी-कभी गलत भी हो जाता था यह फंडा,
और खाना पड़ता था हमको डंडा
आज भी बचपन के पल याद आते हैं ,कभी हंसाते हैं तो कभी रुलाते हैं
फिक्र और जिम्मेदारी किसे कहते हैं यह अब हमने है जाना ,
काश फिर से लौट आए वो बचपन का जमाना!