"बचपन"
"बचपन"
"ऊधो मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं"
उद्धव से मिलकर कृष्ण कहते हैं
भरे मन से ब्रज को याद करते हैं
हे उधो!सुनो, मैं अब तक
बाल सखाओं को, बाल क्रीड़ाओं को
भूल नहीं पाया
यशोदा मैया, नंद बाबा के प्यार को
भूल नहीं पाया
माखन रोटी को,दही छाछ को
भूल नहीं पाया
गायों को, ग्वालबालों को
भूल नहीं पाया
कृष्ण स्वयं अपना बचपन न भूल पाये
बचपन की मधुर यादों को न भूल पाये
बचपन होता ही ऐसा है
हृदय में रच बस जाता है
जब तब याद आ ही जाता है बचपन
मधुर यादों में खो जाता है हमारा मन
मस्त मलंग, घूमा करते थे
दोस्तों संग शरारत करते थे
पिता का प्यार,मां का दुलार मिलता था
बचपन में हर मौसम अच्छा लगता था
मन में न कोई भेदभाव था
न ऊंच नींच का भाव था
चीजों को मिलबांट कर खाते थे
आपस में घुलमिल कर रहते थे
सब हमको प्यारे थे
हम सबको प्यारे थे
बडा ही मधुर, मनभावन होता है बचपन
गांव से कोई आता है ले आता है बचपन
जीवन की आपाधापी से थका हारा मन
ढूंढता है फिर वही अपना मधुर बचपन।।