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Nirupa Kumari

Abstract

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Nirupa Kumari

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बचपन

बचपन

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बहुत याद आती हैं वो यारियां

वो बचपन की शैतानियां

वो खेल खिलौने और

वो दादी नानी की कहानियां


वो पल में रूठना,पल में मान जाना

वो अमिया की बगिया,वो नीम का झूला

वो फिलपत्ती,वो रेत का टीला,दिल अब तक न भूला


ना चिंता न फिक्र,खुशियों भरा खेल खिलौनों का था सफ़र

बचपन के वो दिन जाने खो गए किधर


वो दिन भी क्या खूब थे,दुनियां के गमों से दूर

हम खेल खिलौनों में मसरूफ़ थे

काश! कि लौट पाते वो दिन, अब भी हैं हम

वो ही बचपन वाला सुकून दूंढते।



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