बचपन के दोस्त
बचपन के दोस्त
यार, ये जो बचपन के जो दोस्त होते हैं, बनाए नहीं जाते।
ये तो वो फरिश्ते है, जो तुम्हारे साथ ही है आते।
तुमको तब से जानते हैं, जब तुम्हें बोलना भी नहीं आता था,
तुम्हारा हाथ तब थामा था, जब चलना भी न आता था।
खेलना उन्होंने जरूर सिखाया था तुम्हें, लड़ना, झगड़ना भी उन्हीं के साथ।
आज जब जिंदगी के खेल में उलझ गया, थाम लिया उन्होंने ही मेरा हाथ।
ये जो बचपन के दोस्त होते हैं, ये पगले पीछे भी नहीं छोड़ते।
जब तक तुम्हारे आंसू न निकल जाए, ये साले हंसाना भी नहीं छोड़ते।
ये पगले जब भी मिलते हैं, लगता है कल ही तो मिले थे,
उनके साथ ऐसे ही जी लो यारों, पता नहीं अगली बार फिर कब मिलेंगे।
जब भी मिलते हैं, बातें बचपन की जरूर निकलेगी।
वो किस्सा बस निकले, आंखों में नमी पर हंसी सबकी छूटेगी।
आस पास वाले देख चौक जाते हैं, सोचते हैं ऐसे लोग कहां से आते हैं।
उनकी खैर मुझे क्या फिकर, मेरे जो यार मेरे साथ है।
उमर बीती, कारवां चला, अब
प्रैक्टिकल होने लगे हैं सब, सब में हम कहां आते हैं खैर,
हम तो खुद दो साल की प्लानिंग के बाद मिले हैं अब!
इनके साथ जब बैठो, अपने आपको पा लेता हूं,
यार इनको जब भी मिलता हूं, फिर एक बार अपना बचपन जी लेता हूं।
इनके बारे में जितना लिखूं उतना कम होगा, ये मेरे यार है,
मुझे जो दर्द हुआ, मुझसे ज्यादा इनको दर्द होगा।
उमर के इस पड़ाव में जब जिम्मेदारी थका देती है,
मेरे यार का एक फोन जो आ जाए, और पता नहीं सारी कायनात मुस्करा देती है।
ये वो पगले है, जिनकी बातें बरसो बरस दिल में समा जाती है,
बस बरसो बरसो निकल जाते है आज, इनकी एक झलक पाने को!
जिंदगी ऐसी ही गुजर जाएगी दोस्तों। काम, ज़िम्मेदारी, उमर भी अपना तकाजा लेगी,
जब कभी थमो और कुछ ना समझ आए, अपने उस बचपन के दोस्तों को याद कर लो,
मुस्कान अपने आप ही आ जाएगी दोस्तों !!
बचपन के दोस्तों पर लिखना भी है एक गुना है, साले इमोशन्स को समझेंगे नहीं,
कॉल कर पूछेंगे, पगले ये क्या लिखा है