बचपन का जमाना
बचपन का जमाना


आज फिर जब मुझे बचपन याद आया है,
आंखों के कोने को भींगा हुआ सा पाया हैं।
ना खिलौनों का खज़ाना था,ना दौलत बेशुमार थी,
बस खेल कुछ निराले थे,और दोस्तों की भरमार थी।
ना आसमानों में उड़ना था,ना चांद तारों की फरमाइशें थी,
बस छोटे-छोटे से ख्वाब थे,और छोटी-छोटी सी ख्वाहिशें थी।
शरारतों की होड़ थी,और हंसी से आंगन गुलज़ार थे,
दादा-दादी की कहानियां थी,और पड़ोसी भी एक परिवार थे।
वो मोहल्ला एक प्यारा सा था,जहां पर खुशियों का डेरा था,
हर कोई वहां अपना ही था,ना कोई तेरा था,ना कुछ मेरा था।
घर सबके पुराने थे,पर उसका ना कोई मलाल था,
रौनकें लोगों से ही थी,बस यही तो सारा कमाल था।
हर मौसम अपना सा था,क्या सर्दी, क्या धूप थी,
बारिश में खुली छत पर भीगने की खुशी भी क्या खूब थी।
एक वो भी दौर था,एक ये भी ज़माना हैं,
सब कुछ तो हासिल हैं मगर,खाली हर मन का कोना हैं,
खाली हर मन का कोना हैं!!!!!!