बैठा रहा
बैठा रहा
तिशनगी रिश्तों की पोटली बनाने की बरसों लिए बैठा रहा,
आया नहीं करीब कोई मैं सबको मनाने के लिए बैठा रहा,
सुनाकर चले गए धीरे-धीरे सभी अपनी-अपनी दास्ताँ मुझे,
और मैं अकेला ही महफ़िल में समा बनाने के लिए बैठा रहा,
ओझल आँखों से एक पल भी जिसे मैंने कभी होने ना दिया,
चांदनी रातों में उससे ही मैं बातें मिलाने के लिए बैठा रहा,
जब आँखों के बाद मेरे दिल की धड़कन भी न सुनी किसी ने,
सब भूल कर फिर दाव पर मैं आँसू ही लगाने के लिए बैठा रहा।
