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Anju Singh

Abstract

4.3  

Anju Singh

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बातें मन की

बातें मन की

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60


लिखती हूं बातें अंतर्मन की

चिंतन, दर्द भाव और स्नेह की

जो आता है यादों के झोखों के साथ

लाता है मन में खट्टी मिट्ठी यादें साथ 


ये कभी आती है ख़्वाब बनकर

और कभी आती है भाव बनकर

रेत के मरूस्थल पर जैसे 

दिखते हैं पैरों के निशां

मन के मरूस्थल पर भी

कहीं मेरे पैरों के हैं निशां


आईने में देखते हैं 

हम सब अक्स अपना

मन की ये बातें भी

तो अक्स अपना दिखाती हैं

एक बार तो झांक कर 

देखो खुद को खुद के अंदर

ना जानें ये कितने

रुप नए दिखाती है


यूं ही उम्र गुजरती जाती है

इंसान को समझ कहाॅं आती है

कितनी ही यादें स्याह मन की

धुँधली सी रह जाती है


मन की बातें कई रूप में आती

सागर की लहरों सा छलकाती

मौन निमंत्रण सा मन में

मन को सबकुछ कह जाती


दुनिया की रीत बदलती जाती

हर साॅंचे में ढ़लती जाती

पर मन कहाॅं बदलता है

ये तो वहीं पर रहता है


खुद को समझो खुद को जानो

एक बार खुद को पहचानो

अंतर्मन के हैं जो घाव अधूरे

होगे एक-एक कर पूरे


मैं भी मन के मौन निमंत्रण को

शब्दों में पिरोती हूं

बिन कुछ कहे भावों को

सबकुछ ही कह देती हूं


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