वर्षा ऋतु
वर्षा ऋतु
गर्मी की तपन,
अकुलाहट भरा मन,
अजीब सी बेचैनी,
पसीने से भींगता बदन।
तभी किसी कोने से
बादलों की आहट,
बारिश की झमझमाहट,
मौसम हुआ सुहावन,
न रहे कोई घबड़ाहट।
काले काले बदरा,
जैसे नभ ओढ़े चदरा,
बिजलियों की कड़कड़ाहट,
काँप उठे जियरा।
बारिश की फुहार,
झींगुर की झंकार,
मेढ़क की टर्र टर्र
छाई हर तरफ बहार।
डूबे है नदी पोखरे ताल,
सब चल रहे हैं अपनी चाल,
पेड़ों पर छाई हरियाली,
खेतों में भी हो गयी हाल।
मौसम सुहावन,
लगे मनभावन,
मन मयूर नाच उठे,
देख जल तरंग छटा लुभावन।