बापू के बंदर तीन
बापू के बंदर तीन
बापू के बंदर तीन
मधुर ध्वनि में बजाए बीन।
एक ने आँखों को किया बंद
बुरा ना देखने को मैं पाबंद ।
दूसरे ने मुँह पर रखा हाथ
अगर मैं बोला बुरा,
सज्जन छोड़ देंगे मेरा साथ।
तीसरे ने जोर से कानों पर हाथ टिकाया
बुरा जो तूने सुना,
ना होगा तेरा कोई मित्र और ना हीं कोई भाया।
बापू की यह तीनों बंदर
अपने नियम कायदों पर ऐंठे हैं
आज भी बीच चौराहों में बैठे हैं।
जिस बंदर की आँखें हैं बंद
वह सरेआम मुँह और कान लेता है खोल
जी भर कर बुरा लेता हैं सुन और बोल
मुँह बंद वाला उसे देख सुन कर
खरे सोने सा तराजू में देता है तोल।
कान बंद वाले ने खुली आँखों से
वाह-वाही के तगमों से सजाया उसे दिल खोल।
जमाना बदल गया हैं
सच और सत को
झूठ का फरेब निगल गया हैं।
बापू की यह तीनों बंदर
अपने नियम कायदों पर ऐंठे हैं
आज भी बीच चौराहों में बैठे हैं।