बाल कुंडलिया
बाल कुंडलिया
कुंडलिया छंद
विनती है प्रभु आपसे,रखो हमारा ध्यान।
भारी बस्ता पीठ पर ,बच्चे हम नादान।।
बच्चे हम नादान ,विषय पढ़ने हैं सारे।
बैठूँ पुस्तक खोल, दिखे हैं दिन में तारे।
भूले सारे खेल ,दिखे मस्ती भी छिनती।
बदलो ये हालात,सुनो इतनी सी विनती।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
