सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
आपका नेह मुझको सदा माँ मिले, सोचकर भाव यों गुनगुनाता रहूँ।
मैं हमेशा रहूँ आपकी ही शरण, शीश चरणों में'मैं तो झुकाता रहूँ।
हाथ तेरा हमेशा रहे शीश पर, भाव शब्दों से'झोली न खाली रहे,
छंद बनते रहें दिल मचलते रहें, गीत प्यारा सदा मैं तो'गाता रहूँ।
जानता हूँ मिटे ज्ञान के सब धनी, एक तेरी कृपा आसरा है मे'रा,
दूर कोसों रहूँ गर्व के भाव से, हर निशानी मैं' इसकी मिटाता रहूँ।
चाहता हूँ मुझे रोशनी ही मिले, चाह पूरी सभी की तो' होती नहीं,
साथ में चल रहे साथियों के लिए, आस का एक दीपक जलाता रहूँ।
डर मुझे है नहीं राह की मुश्किलें, रोक देंगी हमारे ये' बढ़ते कदम,
चाहता हूँ कृपा आपकी मैं तो' माँ, पथ नया मैं हमेशा बनाता रहूँ।
छंद का ज्ञान हो भाव भरपूर हों, एक माला बने शब्द से शब्द जुड़,
प्रार्थना है यही मातु आशीष दो, गीतिका नित्य यूँ ही सुनाता रहूँ।
