"बादल" (कोरोना)
"बादल" (कोरोना)
इन "बादलों" को हमेशा के लिए
अब दूर जाना है, बहुत दूर जाना है,
ग़म बहुत सह लिए हमने,
अब तो बस मुस्कुराना है।
साज़िशें इन "बादलो" की,
अब नामंज़ूर है हमें,
तोड़ कर सितारे
यहां ज़मीं पे लाना है।
रूठा है रब तो शिकवा नहीं,
अपने रब को फिर से मनना है,
कुछ भी हो पर,
अब एक बार खुद को आज़माना है,
इंसान बनना कब मुश्किल था,
इस बार काबिल बन जाना है,
तमाम बेमुरव्वत अदायगी थी,
कुछ को ही सही, डूबने से बचना है
अल्फ़ाज़ों के सबब को बदल दो
अब बिना बोले कर के दिखाना है।