औरत
औरत
त्याग और ममता की मूरत,
दिखने में इक भोली सूरत,
लोगों पर दया दिखाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
डरती नहीं जो झंझावातों से,
लड़ती सामाजिक चक्रवातों से,
करती है सभी कार्य दुष्कर,
फिर भी स्नेह दिखाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
दिखते जितने भी भीम भयंकर,
ब्रह्मा विष्णु या हों शंकर,
गोदी में उन्हें खिलाती है,
स्नेह सुधा बरसाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
बेटी, बहना, पत्नी बनकर,
सुख सबको पहुँचाती है,
एक रूप में विविध रूप,
जो जग को दिखलाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
माँ बनकर सन्तान को जनती,
सहती कष्ट अनेकों जो,
पालन करके नन्हे शिशु का,
अच्छा इंसान बनाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
शाप सहे, अभिशाप सहे,
अन्यों के भी वह पाप सहे,
फिर भी मानवता के हित में,
जो सारे कष्ट उठाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
आईना दिखाया जिसने है,
सीता बन अग्निपरीक्षा दे,
बन सावित्री जीता जिसने,
यमराज को खुली चुनौती में।
अनुसुइया बन नारायण को,
शिशु रूप में झूला झुलाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
पन्ना बन शीश कटा दे सुत का,
राष्ट्रधर्म की रक्षा में,
या लक्ष्मीबाई बनकर,
अंग्रेजों से लड़ जाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
त्याग और ममता की मूरत,
दिखने में इक भोली सूरत,
लोगों पर दया दिखाती है,
औरत वह ही कहलाती है।
