औरत
औरत
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औरत को समझना है तो, खुद से ऊपर उठ कर देखो,
औरों की ही हर खुशी में, दिल से कभी झुक कर देखो,
बहुत मर्द बने फिरते हो, कभी इंसान भी बन कर देखो,
दूसरों के हासिलों पर, खुद को खाक कर लुट कर देखो।
औरत को समझना है तो, खुद से ऊपर उठ कर देखो…..
बिना श्री के तो, नारायण का भी कहीं सम्मान नहीं है,
गौरी के बिना शिव का भी, जग में कोई स्थान नहीं है,
सीता और राधा बिन, कृष्ण और राम का नाम नही है,
भगवान को पाना है तो, औरत को अरग दे कर देखो,
औरत को समझना है तो, खुद से ऊपर उठ कर देखो…..
नौ गज़ की सारी में लिपट कर, कभी चल कर देखो,
कभी कोई एक हसरत को, दिल में कुचल कर देखो,
बच्चों के जूठन से ही कभी, पेट अपना भर कर देखो,
अपनों की सेवा में कभी-कभी, रात भर जग कर देखो।
औरत को समझना है तो, खुद से ऊपर उठ कर देखो,
सम्मान न कर सको तो, यूँ अक्सर अपमान भी मत दो,
खुशी न दे सको तो ना सही, आँसू का आघात मत दो,
वो शक्ति है तुम्हारी, पंकज वो तुम्हारा आत्मसम्मान भी है,
दुनिया को जीतना है तो, औरत से कभी हार कर देखो।
औरत को समझना है तो, खुद से ऊपर उठ कर देखो…..