औरत मुझे नाम दिया....
औरत मुझे नाम दिया....
एक नि:शब्द सी पुतली बनाकर औरत मुझे नाम दिया....
कभी दर्द तो कभी समझौते के तोहफे मेरे नाम किया......
घुटती रही चार दीवारों में, उतार इज्जत मुझे नग्न किया,
दो परिवारों की शान रखने के दास्तान में,
मेरे जीवन का सरोकार हुआ,
एक निःशब्द सी पुतली बनाकर औरत मुझे नाम दिया.....
वो रात भर बाजार छानता रहा,
सुबह घर पर बेवफा कह कर मुझे बदनाम किया,
वो तिश्नगी इंतजार की खत्म कर,
किसी और की छाया पायी तो मैंने क्या गुनाह किया,
एक निःशब्द सी पुतली बनाकर औरत मुझे नाम दिया......
बलात्कार जिस्म का ना बल्कि मन का मेरे बार-बार हुआ,
वो जाते वक्त कुछ देर खेल गया,
फिर भी उसे इस खिलौने से प्यार और विश्वास ना हुआ,
एक निःशब्द सी पुतली बनाकर औरत मुझे नाम दिया.....