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Salil Saroj

Tragedy

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Salil Saroj

Tragedy

औकात

औकात

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मैं कैसे जीत पाऊँगा उसे बात से

जो आँकता है मुझे सिर्फ जात से


गाँव के लोग यहाँ जी नहीं पाएँगे

शहर में दिन शुरू होता है रात से


किसान मर न जाए तो करे क्या

ब्याज जमा है पहली बरसात से


उसकी गली का मैं आवारा मसीहा

वो डरती है अब भी मुलाकात से


ईमानदारी, खुदाई दोनों नाकाबिल

बुराई जीत जाती है ख़ुराफ़ात से


दिन, कयामत के बहुत करीब हैं

इंसान पहचाने जा रहे हैं औकात से



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