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V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

अस्थि-मज़्ज़ा से देती सुदृढ़ आकार

अस्थि-मज़्ज़ा से देती सुदृढ़ आकार

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कोमल कंचन काया से सिंचती है नवांकुर को परिहार,

अपनी अस्थि मज़्ज़ा से मेदिनि को देती सुदृढ़ आकार !


चिलचिलाती ज़िन्दगी की धूप में वो बनती है घनी छाया,

अपनी संतति को देख हर भारतीय नारी का मन हर्षाया !


जीवन प्रतिपल जो बदल रहा है वह धूप छाँव का खेला है,

एक स्त्री का हृदय तो समझ लो कि ममता प्रेम का मेला है !


त्याग समर्पण के साथ अब नारी दृढ़ता और साहस से सिक्त है,

बात सिर्फ उन ललनाओं की नहीं जो मातृत्व आभा से युक्त हैं !


बल्कि हर स्त्री अपने आप में एक असीम शक्ति समाए हुए है,

हर स्त्री की पुरज़ोर कोशिश आज तमाम वर्ज़नाओं से मुक्त है !



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