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Taj Mohammad

Abstract Tragedy Action

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Taj Mohammad

Abstract Tragedy Action

अस्मतों के बाज़ार लग गए हैं।

अस्मतों के बाज़ार लग गए हैं।

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अस्मतों के बाजार लग गए है।

जिस्म ए इंसा खुशियों के सामान बन गए है।।1।।

हुस्न के इन जलते चरागों में।

जाने कितने ही घरों के अरमान जल गए है।।2।।

बड़ा आलिम है वो शहर का।

उसके कहे हर अल्फाज़ फरमान बन गए है।।3।।

मुहब्बत पे कैसे करें अकीदा।

दिल्लगी जिससे की दुश्मने जान बन गए है।।4।।

जिन्दगियां हिदायत पा गयी।

वो सारे कलमा पढ़ के मुसलमान बन गए है।।5।।

अब क्या कोई जुदा करेगा।

हम एक-दूसरे के जमीं आसमान बन गए है।।6।।



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