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Ashish Vairagyee

Romance

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Ashish Vairagyee

Romance

अर्धांगिनी तुम्हारी

अर्धांगिनी तुम्हारी

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बड़ी बेदर्दी से तोड़ा है तेरा दिल आज मैंने

बड़ी बेरहमी से छिनी हैं इबादतें तुम्हारी

ये कहकर की बहुत समझदार हो गए हो

मुझे अच्छी नहीं लगती ये बातें तुम्हारी।

बहुत जल्द मान लेते हो मेरी सब शिकायतें

बहुत जल्द भूल जाते हो ग़लतियाँ हमारी

ख़ामोश होके हंसते हो मेरी हर बहस में

मुझे भाती नहीं हैं ये सब आदतें तुम्हारी।

मेरे बेतुके सवालों पे ख़ामोश क्यो हो?

नज़ाकत, ये लहज़ा, किस लिफाफे में तुम हो?

तोड़ क्यो नहीं देते ये क़ायदे कानून की दीवारें

मुझे समझ नहीं आती मासूमियत तुम्हारी

तुम्हें छोड़ने की मुझपर कोई वजह तो नहीं है

पर क्या करूँ की खुद से नफ़रत भी न हो

तेरा साँचा अलग है मेरा साँचा अलग है

मुझे कहनी नहीं आ रही बातें ये सारी

जाओ ढूंढ लो तुम वही मासूम चेहरा

जिसमे जिक्र हो तुम्हारा हर बात हो तुम्हारी

जो तुम्हारे ही कदमों के निशान पर चले फिर

जो ढल सके तुममे, हो अर्धांगिनी तुम्हारी

तुम चंदर हो जाओ किसी के, हो कोई सुधा तुम्हारी


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