अक़ीदा
अक़ीदा
तराश कर/निर्वाह कर,या,
तलाश कर/ज़िन्दगी भर ;
नसीब से है...जो भी मिला,
उसका तुझे…है क्यों गिला;
किस होड़ में है ऐसे भागता,
दिन रात को तू कैसे जागता;
अरे! शांत हो जा ज़रा ठहर,
और स्वयं की तू फ़िक्र कर;
जो मिला है उसमें सुकून पा,
तू किसी ग़ैर का न मोह कर;
बस तराश कर/निर्वाह कर,
या तलाश कर/ज़िन्दगी भर!