अपराधबोध
अपराधबोध
कुकर की सीटी में
वे दबाती गईं सिसकियां
नल के नीचे बैठ घंटों
वे बहाती गईं आसूं
मेकअप से चेहरे पर
वे छुपाती रहीं निशान
कपडो़ संग छत पर
वे फटकारती रहीं अवसाद
चाय में अदरक संग
वे खौलाती रहीं गुस्सा
रसोईघर से वाथरूम तक
बना डाले कोपभवन
जो केवल उनके रहे
जहां जब -जब जातीं
वो दर्द पीतीं
दीवारों से दर्द बांट
मर -मर जीतीं
कोई देख ना सका
उनके मन में बसे
पीडा़ के पहाड़
छाती पर रखकर
कुछ ना कह पाने का
कुछ ना कर पाने का
अपराधबोध
वे मर गईं !
सुनो! लड़कियों
वे जो कर गईं
या कर रहीं
तुम हरगिज मत करना
तुम्हें जो मिले
दुगुना लौटाना
वो तुमसे प्यार करे
तुम उसकी पूजा करना
वो तुम पर चिल्लाये
तुम चीख उठना
पहले थप्पड़ को ही तुम
सूद समेत वापस करना
ताकि जी सको ताउम्र
खुद से नजरें मिला
और मर सको
सुकुन से
समझ रही हो ना
जुल्म करने से कहीं ज्यादा
गलत होता है
जुल्म सहना.......