STORYMIRROR

Geeta Upadhyay

Abstract

4  

Geeta Upadhyay

Abstract

अपनी ही जड़ों को कटवाया

अपनी ही जड़ों को कटवाया

1 min
210

हर क्षेत्र में ऊंचाइयों से भी ऊपर गई

 नाजुक कोमल कमजोर इन परिभाषाओं 

को बदलना चाहा


स्वच्छंद स्वतंत्र बिंदास बन कर दिखाया 

पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाया 

अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया


धरती पर गाड़ी आकाश में विमान चलाया

 मां बेटी बहन बीवी बनकर

 हर रिश्ता निभाया


कुंठित सोच को हर मोड़ पर कुचलना चाहा

वहशीयों ने अपने हाथों की 

कठपुतली बनाया


कभी मारा तो कभी जिंदा जलाया

पैदा होने से पहले ही कोख में मरवाया 

हंसते मुस्कुराते हर दर्द को छुपाया 

क्यों नासमझों ने

अपनी ही जड़ों को कटवाया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract