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Lakshman Jha

Romance

3  

Lakshman Jha

Romance

अपने घर आ जाओ

अपने घर आ जाओ

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कहाँ हो कैसे हो ?

मैं राह निहार रही हूँ !

सुने में तकिये तले

मुंह छुपाये रो रही हूँ !


आँखें मलते -मलते

लाल हो गयी हैं !

दिन भर इंतजार करके

रातें बेकार हो गयी हैं !


मैं लॉक डाउन

के मापदंडों को

निभाउंगी !

मर्यादा के दहलीज

के अन्दर ही सिमट

के रह जाउंगी !


तुम तो चले जाते हो

आने को भूल जाते हो !

हमारी चाहतों को

तुम सदा तडपाते हो !


बस बहुत हो गया

काम काज दूर रहना !

अब जुदाई का भला

क्यों दर्द सहना !


घर में जो सुख है

कहीं मिलता नहीं !

तुम्हारे बिन मुझे कुछ

और अब भाता नहीं !


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