अपने घर आ जाओ
अपने घर आ जाओ
कहाँ हो कैसे हो ?
मैं राह निहार रही हूँ !
सुने में तकिये तले
मुंह छुपाये रो रही हूँ !
आँखें मलते -मलते
लाल हो गयी हैं !
दिन भर इंतजार करके
रातें बेकार हो गयी हैं !
मैं लॉक डाउन
के मापदंडों को
निभाउंगी !
मर्यादा के दहलीज
के अन्दर ही सिमट
के रह जाउंगी !
तुम तो चले जाते हो
आने को भूल जाते हो !
हमारी चाहतों को
तुम सदा तडपाते हो !
बस बहुत हो गया
काम काज दूर रहना !
अब जुदाई का भला
क्यों दर्द सहना !
घर में जो सुख है
कहीं मिलता नहीं !
तुम्हारे बिन मुझे कुछ
और अब भाता नहीं !