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डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

Drama

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डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

Drama

अपनापन

अपनापन

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शहर की ओर चला दर दर भटका,

नहीं मिला कोई अपनापन।

भूखा प्यासा जीवन अधर में लटका,

नहीं मिला कोई अपनापन।

                

टूटा सा हारा सा मन था मेरा,

कोई नहीं मिला अपना सहारा।

लड़ाई झगड़ा होता तेरा मेरा,

जीवन को न समझा मानुष बेचारा।

                

प्रेम स्वाभिमान की ज्योति जलाये रखा,

रिश्ता की आत्मसम्मान बचाये रखा।

मेहनत की रंग ऐसा पलटा की,

दुनिया उस पर प्रेम लुटाये रखा।


प्रेम में एक दूजे देखते हैं कई सपने,

दिल साफ है तो गैर भी होते हैं अपने।

हमेशा सरल सादगी का होता है बड़प्पन,

जीवन की असली परिभाषा यही है अपनापन।


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