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Vikram Kumar

Tragedy

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Vikram Kumar

Tragedy

अपना बेगाना हुआ

अपना बेगाना हुआ

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कैसी घड़ी आ गई है कैसा ये जमाना हुआ

धन सभी का अपना है अपना बेगाना हुआ

बंगले गाडि़यों की चमक में सभी रत हो गए

एहसास सारे अपनेपन के जाने कहां खो गए।


चकाचौंध दौलतों की हर तरफ फैले हुए

स्वार्थ में विचार भी इंसान के मैले हुए

साफ दिल सही नियत का किस्सा पुराना हुआ

धन सभी का अपना है अपना बेगाना हुआ।


पहले रिश्तों को निभाने का बड़ा जूनून था

कोई भागदौड़ न थी चैन और सूकून था

पहले गांव के हुए थे अब शहर के हो गए

भावनाओं के असर भी बेअसर से हो गए।


बेकार सा अब के समय में रिश्ता निभाना हुआ

धन सभी का अपना है अपना बेगाना हुआ

सुख सभी संसार के अब पाना चाहते हैं सब

पुण्य नहीं सिर्फ धन कमाना चाहते हैं सब।


धन से मिलती चीज हर आज की इस दुनिया में

है पुण्य का नहीं असर आज की इस दुनिया में

आसान अमीरों के लिए पुण्य कमाना हुआ

धन सभी का अपना है अपना बेगाना हुआ।


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