अफ़सोस
अफ़सोस


अफ़सोस, कि हो जाते हैं
सारे ही मर्द,
'नामर्द' में तब्दील।
उस वक़्त, जब नहीं बना
पाते एक ऐसा समाज,
जहां रात-बिरात घर से बाहर
आ-जा सके कोई भी लडकी,
किसी भी वक़्त।
जहां रह सके कोई भी
औरत अपनी इच्छा से।
जहां ना हो उसे कैसा भी डर 'मर्दो' से,
किसी जानवर को अपेक्षा।
लेकिन हो नहीं पाता ऐसा,
और हो जाते हैं तमाम मर्द
'नामर्द' में तब्दील,
अफ़सोस कि यह सत्य है।