कुचली कली
कुचली कली
3 साल पहले, वो गांव से शहर आया था। अपनी पत्नी फूलन, और उसके हाथ में 2 साल की बेटी कली कुमारी को लेकर। वो ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। कम पढ़ा लिखा होने के बावजूद,वो एक विस्तृत मानसिकता वाला 28 वर्षीय आदमी था। जब 8 वर्ष का था। तब बटाई पर लिए खेत में काम करते वक़्त पिताजी को सांप ने काट लिया। और शरीर के निचले हिस्से में ज़हर फैल जाने से आधा शरीर लकवा ग्रस्त हो गया। जबकि मां पहले से ही बरसो पुराने तपेदिक के चलते रात दिन खटिए पर पड़ी-पड़ी सूखी जा रही थी। इधर घर में दो छोटी और सबसे बड़ा रामू उर्फ़ रमा शंकर। अब मां के साथ-साथ पिताजी के रखरखाव की ज़िम्मेदारी भी रामू के 11सालाना कंधो पर आ गई थी।
जिसके चलते रामू का नसीब कुछ ऐसा हुआ, कि उसे दुबारा कभी स्कूल की दहलीज देखना भी नसीब नहीं हुआ। परिवार की गरीबी के चलते, ठीक से पढ़ लिख नहीं पाया। वो भले ही किताबी ज्ञान, से काफ़ी दूर हो चला था। पर धीरे-धीरे ज़िन्दगी के गुना-भाग को समझने लगा था। दूसरो के खेत में मज़दूरी करता और जैसे तैसे, कम उम्र में ही परिवार का भरण पोषण करता।
उधर, रामू के बाप को लगता रहा, कि उसकी वजह से उसके बेटे की पढ़ाई, उसका बचपन, सब कुछ उसके लकवे से बेजान पड़े पैरो ने छीन लिया है। अपने हिस्से की भाग दौड़ उसने उसके पैरो में बांध दी। उसे लगने लगा, जैसे वो एक बाप ना होकर एक बोझ बन गया है, अपने ही बच्चो पर। अपने को एक हारा हुआ बाप समझ कुछ करने का निर्णय किया। सो एक दिन,उसने अपने पास किसी को ना पाकर। अपनी ही जेब में रखी माचिस से खुद को आग लगा ली। और इधर पति की आत्महत्या के कुछ दिन बाद ही खटिया पर पड़ी रात दिन तपेदिक से जूझती मां भी चल बसी। अब अपने टूटे हुए दो कमरों के घर के साथ ही उसकी दोनों बहनों का भार भी रामू के 15 सालाना कंधो पर हमेशा के लिए जम चुका था। जैसे, तैसे रामू ने रात दिन दूसरो के खेत में काम करके अपनी दोनों बहनों के हाथ पीले किए,.....।
अब घर बिल्कुल सुना पड़ चुका था, अब गांव की दाई जिसके हाथों ही रामू पैदा हुआ था। वो जब भी रामू से मिलती तो कहती,
“अरे बेटा अब तू भी बियाह करले। कब तक अकेला रहेगा, कोई तो होना चाहिए ना देख भाल करने के लिए, जाल चाल पूछने के लिए ?”
“अरे काकी तू है तो,हालचाल जानने के लिए।”
“अरे मैं क्या हमेशा बैठी रहूंगी? मैं भी तू मारूंगी ही जाऊंगी एक दिन।”
और एक रोज़ वो दाई भी चल बसी।
अब रामू सच में अकेला हो गया था। सो गांव के लोगो ने उसका बियाह करवा दिया।
अब उसके आंगन की तुलसी फिर से हरी हो चली थी।
चूल्हे में आंग भी उठने लगी थी कि देखते ही देखते।
उसके घर एक लड़की हुई। फूल सी दिखने वाली जिसे सब फूल कुमारी कहते थे।
वो बहुत ख़ुश था। अब ज़िन्दगी की गाड़ी फ़िर से पटरी पर दौड़ रही थी।
जब फूल कुमारी 4 बरस कि थी, तब एक बार फिर से उसकी मां पेट से हुई...
लेकिन ना जाने क्या नज़र लगी अभागिन को, कि सातवे महीने में ही बच्चे की थैली फट गई।
गांव वालो ने कहा कि नहीं बच पाएगी सो वो उसे शहर के अस्पताल में ले गया।
ऑपरेशन के पैसों के लिए उसे गांव का मकान भी बेचना पड़ा।
मुआ ऑपरेशन तो हुआ। लेकिन, अभागिन बच्चे को जन्म देते देते, ख़ुद भी मृत्यु को प्राप्त हो गई। ना तो खुद बच पाई और ना ही बच्चा।
अब ना तो पत्नी थी और ना ही गांव का वो मकान।
बस साथ था कोई, तो वो थी फूल कुमारी।
अपनी हालत को देख उसने निर्णय किया कि, अपनी बेटी को ज़रूर पढ़ाएगा। वो सब उसके नसीब नहीं चढ़ने देगा। जो उसकी ज़िन्दगी की किताब में घटनाओं के रूप में लिखा हुआ था।
वो अब शहर की एक बहुत बड़ी कोठी में माली का काम करता है। जहां बहुत बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बड़े-बड़े सूट-बूट पहने लोगो का आना-जाना लगा रहता है।
और फूल कुमारी भी स्कूल जाने लगी है। स्कूल से आने के बाद अक्सर पिता के द्वारा लगाए हुई कियारी में कोठी की मालकिन के बच्चो के साथ खेलती है। जो लगभग उसकी हम उम्र के है।
एक दिन, कियारी में पौधे लगाते पिताजी को देख, अपनी तुतलाती ज़ुबान से बोल पड़ी।
“पापा-पापा ये त्या तल लहे हो ?”
अपनी अल्हड़ बेटी को देख रामू, “बिटिया हम पोधा लगा रहे है!”.
“कोंछा पोधा पापा ?”
“यह है गुलाब के फूल का पोधा !”
छूते हुए “आइ, पर इच पल तो कांते हैं फूल नहीं !”
”अरे बिटिया, अभी नहीं। जब बड़ा हो जाएगा तो इन्हीं कांटो के बीच में पहले कली आएगी। बिल्कुल हमारी बिटिया की तरह और फिर धीरे-धीरे जब वो बड़ी हो जाएगी तो बन जाएगी फूल।"
“अम्मा की तलह?”
फूल वाली बात सुन रामू चुप हो गया है। शायद, अपनी पत्नी फूल कुमारी की याद से आंखो में पानी आ जाता है। वो सिर नीचे कर काम करने लग जाता है।
और वहीं उसकी बिटिया कली कुमारी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। शायद, उसके मन में उस पोधे पर लगने वाले फूल में अपनी मां को देखने की लालसा पैदा हो चुकी है।
और उस दिन से, कली कुमारी रोज़ सुबह उठ कर, और स्कूल से आने के बाद। ख़ुद कुछ भी खाने-पीने से पहले उस पोधे को खाद व पानी देती।
एक रोज़ जब उससे पहले रामू ने उस पौधे को पानी दे दिया। तो यह देख उसने खाना-पानी सब छोड़ दिया। यहां तक अपने बाप से बात भी नहीं की।
अब, अपनी बेटी की ऐसी स्तिथि देख उससे रहा न गया सो अपनी बेटी से पूछ ही लिया।
“अल्ले मेरी बिटिया हमारी वजह से नाराज़ है।”
“तुमने हमारे पोधे को पानी क्यूं दिया ? ”
उस दिन वो उससे बहुत लड़ी थी।
“ओहो...! तो ये बात है। ठीक है अब से हम नहीं तुम ही देख रेख करोगी उस पोधे का।”
और तब कहीं जाकर उसने अपने बाप के हाथो से पूरे दो दिन बाद खाना खाया।
जिस तरह से मां एक बच्चे का पालन पोषण करती है। ठीक वैसे ही, कली कुमारी उस मां रूपी उस पोधे का ध्यान रखती ही।
कुछ समय बीतने पर उस पौधे में कांटो के बीच अब कलिया फूटने लगी।
और बिटिया के पूछने पर, रामू ने बताया कि, ये कली है बिल्कुल हमारी बिटिया की तरह।
तभी वो परेशान होते हुए बोली “पर फूल कब आएगा पापा?”
“एक दो दिन में फूल भी आ जाएगा बेटा” रामू ने मुस्कुराते हुए कहा।
इधर,कोठी में बहुत सारे लोगों के आने जाने वालो का जमावड़ा लगा हुआ था। कभी कोई बड़ी—बड़ी लम्बी गाड़ी में आता, तो कभी कोई लाल बत्ती की सरकारी गाड़ी में।
एक दिन रामू को मालिक के कहने पर, कुछ पॊधे पहुंचाने वा उनकी देख रेख के लिए जाना पड़ा। सो अपनी बेटी ‘कली कुमारी’ से मालकिन के बच्चो के संग ही खेलने, और खुद रात तक लौट आने की कहकर, सुबह ही चला गया।
इधर, स्कूल से आकर बच्चो संग खेलकर, अपने उस गुलाब के पोधे को पानी देकर, वहीं खड़े-खड़े उससे ना जाने क्या बतियाने लगी।
और जब रात हो गई तो, अंधेरा देख, वहीं कियारी के पास बने एक कमरे के अपने घर में चली गई।
वो अकेली थी। रात भी हो चुकी थी। उसके साथ कोई बाते करने वाला नहीं है। उसका बाप रामू भी नहीं, थोड़ी देर में उसकी आंख लग गई, और उसे पता ही नहीं चला।
तभी, कुछ ही देर में बाहर कियारी के पास से। किसी कौए के काओं-काओं करने की आवाज़ आने लगी।
सो बिस्तर पर पड़ी उसकी आंख खुलते ही खिड़की से बाहर उस उसी गुलाब के पोधे को देखती है, तो पाती है कि, एक कौआ उस पर बैठने वाली मधुमक्खी को चोंच मार रहा है। जिससे, उसकी चोंच की चोट से उस कली को चोट पहुंच रही है। और यह सब देख यहां कली कुमारी के मन को चोंट पहुंच रही है। सो वो, गुस्से में आकर, एक डंडा उठाती है।
और, लग जाती है उस कोए के पीछे। उसे भगाने के लिए।
वो लगातार उस कोए को भागने के लिए ख़ुद भी इधर-से-उधर भगाती रहती है। और भगाते-भगाते कोठी के पीछे वाले हिस्से में कब पहुंच जाती है। उसे खुद भी मालूम नहीं पड़ता।
पर अब कोआ भी नज़र नहीं आ रहा है शायद, वो चला गया है।
पर, यह है कौन सी जगह है? वो यहां पहले कभी नहीं आई। चारो ओर एक दम ख़ामोशी चीखता हुआ सन्नाटा। पास पड़ी किसी लकड़ी या दीवार के पीछे से झींगुर की आने वाली आवाज़ें, और किसी खंबे से आ रही माध्यम सी पीली रोशनी में खड़ी ‘कली कुमारी'। तभी, रास्ते से गुजरते हुए, एक वहीं बने एक कमरे में से, कुछ आवाजे आने लगी सो उसे अपने बाप की कही बात याद आने लगती है। उसने कई बार कहा था। कि पीछे बने उस कमरे की तरफ कभी मत जाना।
पर, इस वक़्त उस कमरे से आने वाली आवाज़ अपने बाप की कही उस बात से कहीं ज्यादा तीव्र गति से उस पर हावी हो जाती है, वो ना चाहते हुए भी उसके मन में, उस दरवाजे़ के पीछे से आने वाली आवाज़ की तरफ़ खिंची चली जा रही है। अब उसके कदम, अपने घर की ओर ना जाकर, अब उस दिशा की ओर चले जा रहे हैं। जहां से वो आवाजे आ रही हैं, और उसे उस दरवाज़े की ओर खींच रही है। वो ना चाहते हुए भी उस दरवाज़े की तरफ चली जाती है। और उसके भीतर, उस दरवाज़े के पीछे से आने वाली आवाज़ों के पीछे की घटना को देखने की लालसा बढ़ जाती है। सो वो, दरवाज़े में बने एक छेद से भीतर देखने की कोशिश करती है। कुछ ही देर में पता नहीं वो ऐसा क्या देख लेती है, कि जिसके डर से वो अचानक से पीछे हटती है। पर जैसे ही वो पीछे हटती है, उसके सिर से कुण्डी टकरा जती है। तभी, उसके मन में डर पैदा होने लगता है।
पाता नहीं उसने क्या देखा। पर अब, उसे अपने घर पहुंचना है। शायद, उसका बाप आ चुका होगा अब घर पर। अब वो भी धीरे-धीरे घड़ की तरफ चलना शुरू कर देती है। तभी उस लगता है, जैसे उसके पीछे-पीछे कोई चल रहा है। वो कांप जाती है और बिना पीछे मुड़े, घर की तरफ दौड़ लगाना शुरू कर देती है। और चीखती हुई घर पहुंच अपने बिस्तर में घुस जाती है।
वो अब भी चीख रही हैं, लगातार! और कुछ देर में उसकी चीख बंद हो जाती है अब वो बिस्तर पर लेटी लेटी अपने घर की खिड़की से बाहर उस कोए को उस फूल पर चोंच मारते हुए देख रही है। पर उठ नहीं पाती।
अगले दिन रामू तकरीबन, सुबह 10 बजे पहुंचता है। उसे लगता है, कि अब-तक कली कुमारी, स्कूल भी चली गई होगी। धूप बहुत ज़ोर की है कियारी बिल्कुल सूखी पड़ी है। वो पोधो में पानी देना शुरू करता है पर जो ही गुलाब के पोधे के पास जाता है, तो देखता है आज, वो भी सूखा पड़ा है। उसे भी पानी नहीं दिया गया। उसके मन विचलित हो उठता है। कि उसकी बेटी इस पोधे में कभी भी पानी देना नहीं भूलती फिर, आज कैसे?? वो कांटो के बीच लगे पोधे में लगे उस कली को ढूंढता है।
पर वो, उसे कहीं नहीं दिखती। वो डर जाता है वो आसपास देखने की कोशिश करता है, और अपने पैरो के पास नीचे ज़मीन पर, उस कली के पत्तो को बिखरा हुए पा उसे अपने हाथ में लेकर। अपनी बेटी को याद करने लगता है और फिर तेज़ी से अपने कमरे की तरफ दौड़ता हुआ पहुंचता हहै। और जैसे ही, दरवाज़ा खोलता है, तो खून में सनी, चेहरे पर दांतो से कटे निशान और कमरे में फैली शराब की बदबू के बीच लाश की सी पढ़ी पांच साल किसी अधनंगी लड़की के शरीर को पता है। उस कमरे में उसे अपनी बेटी कली कुमारी नहीं।
बल्कि, “किसी के द्वारा, कुचली हुई कली को पता है।