रिश्ते!
रिश्ते!
ये गली ये कूचे, ये घर ये आंगन एक दूजे से कहने लगे हैं,
कि अब भी यहां रिश्ते रहते हैं, या कहीं और ही रहने लगे हैं।
अपने हिस्से के लिए ताकत ना होने पर भी सभी डटे रहने लगे हैं
एक ही छत के नीचे रहते हुए भी एक- दूजे से कटे रहने लगे हैं,
पराए तो पराए थे ही अब अपने भी पराए लगने लगे हैं,
जो मा बाप ज़िन्दगी भर हमारा बोझा उठाते रहे, अब वो ही बोझिल लगने लगे हैं,
पहले एक थाली में चारो बच्चे खाना खाते थे,
अब वही एक घर के ही चार टुकड़े करने पर तुले हैं,
पहले ये हंसी-मज़ाक में लड़ते थे,
अब ये हर बात में लड़ने लगे हैं।
पहले रिश्ते निभाने के लिए मचलते थे,
अब ये रिश्तों से बचने लगे हैं,
छोटे थे तो साथ रहने के सपने देखते थे ये रिश्ते,
अब अलग होने के शड़यंत्र रचने लगे हैं।
ये गली ये कूचे, ये घर, ये आंगन एक दूजे से पूछने लगे हैं,
कि अब भी यहां रिश्ते रहते हैं, या कहीं और ही रहने लगे हैं।
