अनसूनी आवाज
अनसूनी आवाज
माँ , में तुम्हारे आंचल मे खेलना चाहती थी,
पर नही खेल सकती, आज में मजबूर हूँ
पापा, में आपकी उंगली पकड़कर चलना चाहती थी,
पर नही चल सकती, आज में मजबूर हूँ
दादी, हर रात आपसे कई कहानियाँ सूनना चाहती थी,
पर नही सून सकती, आज में मजबूर हूँ
दादाजी, हर रोज आपके साथ बगीचे में टहलना चाहती थी,
पर नही टहल सकती, आज में मजबूर हूँ
भैया, हर रोज तुन्हारे साथ मस्ती करना चाहती थी,
पर नही कर सकती, आज में मजबूर हूँ
सबकी तरह इस दुनिया मे आना चाहती थी,
पर नहीं आ सकती, उस दिन एक माँ मजबूर थी
