अनोखी यात्रा
अनोखी यात्रा
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घूम के वादियों में ,
फिर यहीं जमीं पे ,
तेरा हाथ पकड़ के ,
चल चलें कहीं पे |
कभी स्वर्ग की यात्रा ,
कभी तारों की नगरी में ,
बादलों के बीच जा ,
फिर झाँक लें जमीं पे |
कभी परियाँ मिले गलियाँ ,
कभी चन्दा पे आँखें मींचे ,
तेरे साथ हर कदम ,
हम बहकें जब तू खींचे |
घूम के वादियों में ,
फिर यहीं जमीं पे ,
तेरा हाथ पकड़ के ,
चल चलें कहीं पे |
कभी समुद्र में डूब ,
हम दोनो करें बातें ,
भ्रमण की ऐसी याद में ,
हजारों बितायें रातें |
पृथ्वी , पाताल और आकाश में ,
हो अपने सपनो का डेरा ,
ऐसी अनोखी यात्रा का ,
हो ना कोई सवेरा |
घूम के वादियों में ,
फिर यहीं जमीं पे ,
तेरा हाथ पकड़ के ,
चल चलें कहीं पे ||