अनमोल धरोहर
अनमोल धरोहर


मत कहो है ये जीर्ण दीवार..
ये तो हैं यादों की परतों का हार
संग्रहित किस्सों को कह रही नियमित आर पार
खंड इसके किंचित भी नहीं टूटे प्राचीन और पुराने..
यह तो हैं सौंदर्य स्मरण के बेशुमार अमिट खजाने..
साजों शौक से कभी यहाँ उत्सव मनुहार हुए थे
रंगोली कलश से गोलाई में प्रांगण खूब सजे थे
स्पष्ट जो केंद्र में है स्थित दीर्घायु वृक्ष वो दरख़्त
था वह कभी शोभा आकर्षण का ताज़ो तख्त
दीप कई नीचे इसके असंख्य टिमटिमाते जले थे
शिव अभिषेक संग आशीष खूब मिले थे..
जाने कितने पग निशां यहाँ मौजूद हैं...
वक्त के संग ना अब इनका
वजूद है...
फिर भी तरो ताज़गी संग कह रहा...
वह क्रमश: हर पन्नों का व्याख्यान
क्योंकि था वह महफिलों की आन बान शान
हो न सका जिनका जीर्णोद्धार क्या थी व्याधि..
अब तो है वही चक्षुओं की संजीवनी औषधि
फिर भी कमाल है आज भी इन अवशेष खंडहरों पर
नहीं कोई...टीका, टिप्पणी और नुक्ता चीनी..
आ रही यहाँ से आज भी अपनेपन की अनूठी
खुशबू महक सोंधी सी भीनी-भीनी..
जागरूक होकर है कर्तव्य अब हमारा
समय रहते इनको जाए सँवारा..
अनमोल धरोहरें ये रहेंगी जीवित हर श्वास-श्वास
सौंदर्यता सजेगी तभी पावन भू धरा के आस- पास..