अनजान
अनजान
कोई राह नहीं ,
ठहरने को कोई मंजिल नहीं !
बस चले जा रहे हम
पर कहां
हमें भी पता नहीं ।
इस माया में सब फसे हैं,
निकलने को हैं सबको पता !
कोई निकलता नहीं ।
वो चांद को लाने की बात करता है
जो सिर्फ उसके आंखो से दिखता है और किसी की आंखो से नहीं।
क्या कहूं !
क्या रूप हैं क्या कुरूप हैं ,
उसके बनाए हैं बस
सब का अपना अलग ही आनंद हैं।
