वह कहता हैं शौर्य शायर .....
वह कहता हैं शौर्य शायर .....
गलती यह है मेरी कि मैंने शायर से प्यार किया...
शब्दों से खेलना तो उसकी आदत है
इसी आदत से हमसे मोहब्बत है ।
हम तो वफा के लिए उसके पीछे पीछे गए थे....
हमको क्या पता वह फूलों का फुलवारी बन मिलेगा ।
वह कहता हैं शौर्य शायर हूं
सबको अपनी शायरी बनाता हूं
कभी दिल तोड़ कर
कभी बेवफा बनके।
हां , माना तुम शायर हो
पर बेवफा बनके हमें क्यों तड़पाते हो..
कभी तुम यहां होते हों
कभी तुम वहां रहते हों...
कभी हमारे पास क्यों नहीं रहते हों ।
मुझे अब डर लगता है
तुम खो रहे हो
शौर्य शायर बन के....।
एक बार वापस लौट आओ
शौर्य बनके ...।
हां,माना हूं मैं शौर्य शायर..
और हूं बेवफा भी
माना मैं शायर मैं खो रहा हूं..
पर बेवफा भी तुम्हीं बना रहे हो
दिल तोड़ना है मेरी आदत
पर इश्क के साथ खेलना है मेरी फितरत...
मैंने कहा था लौट आओ मेरे पास
नहीं तो हम दूर चले जाएंग
तुम पास बुलाओगे हम लौट के वापस नहीं आ पाएंगे।
हां ,थी मेरी कुछ मजबूरी जो नहीं आई ...
अंत में ही सही लौट तो आई....।
अब मैं ही कहता हूं लौट जाओ
मैं अब वापस नहीं आ पाऊंगा...
इस सफ़र में मैं इतना दुर चला आया हूं
अब चाह कर भी नहीं लौट पाऊंगा।
अब मैं शौर्य नहीं शौर्य शायर हूं
दिल तोड़ना है मेरी आदत
इश्क के साथ खेलना है मेरी फितरत...
तुम चले जाओगे तो मेरा क्या होगा तुमसे दूर खुद को रहा नहीं चलेगा..
अब रब के घर जाकर ख़ुद को
भूलना पड़ेगा....
फिर से तुम्हारे लिए मोहब्बत मौसम लाना पड़ेगा.....।
