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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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अंधकार

अंधकार

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कभी कभी बहुत दूर लगती है मंजिल,

लगता है जैसे घोर अंधकार जीवन में।


पैरो मे अटकी जंजीरे, 

गले में अटकी सांसे,

कर देती है हलकान,

अंधेरे में रहने को मजबूर।


ढूंढते हैं आशा के उजियारे,

निराशा के अंधकार के बीच,

करती हैं निरुत्तर लोगों की बातें,

उत्तर के प्रति असंवेदनशील।


लोग भुला देते है उजाले का अस्तित्व,

जो रखेगा कभी कदम हमारी जिंदगी में,

लौट जाना होगा अंधेरे को बैरंग,

हमारी हिम्मत के आगे।


कभी कभी बहुत दूर लगती है मंजिल,

लगता है जैसे घोर अंधकार जीवन में।


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