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shaily Tripathi

Abstract Fantasy

3  

shaily Tripathi

Abstract Fantasy

अनचिन्ह सा

अनचिन्ह सा

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अपने आँचल में कुछ तारे, थोड़ी सी किरनें चुन लाई, 

तिरते बादल में घुली हुई, धुंधली आकृतियाँ छू आई, 

मैं कुछ पल उससे से मिल आई 

कम्पित, गुंजित से कुछ स्वर-कण, उनसे स्पन्दित हो आई,  

सोंधी यादों के कुछ अंँखुए, मन की मिट्टी में बो लाई 

मैं कुछ पल उससे से मिल आई

मरुभूमि तप्त इन पाँवों को, शीतल सरिता में धो आई, 

भावी पथ के पाथेय हेतु, कुछ स्नेह सीकरें ले आई 

मैं कुछ पल उससे से मिल आई

अनचिन्ह सा कुछ मैं चख आई. 


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