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Chandra prabha Kumar

Fantasy

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Chandra prabha Kumar

Fantasy

अनार वृक्ष

अनार वृक्ष

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परहित फटा मैं

चुगने दिये दाने अपने,

चुग चुग दाने उड़ गई चिड़िया

स्वार्थ की है दुनिया।


जब तक है मतलब,

सब आते पास।

पूरा हुआ मतलब,

कोई न रहता पास।


लिये खोखले अनार,

खड़ा अब मैं एकाकी,

 फिर भी सौन्दर्य है भरपूर,

निष्काम सुख दुख से दूर।


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