अमृत वर्षा
अमृत वर्षा
प्रभु का नाम बड़ा प्यारा है..
प्रभु का स्नेह बड़ा न्यारा है..
मात्र जगत का पालन करने..
प्रभु ने जग को रच डाला है..
जीव जीव में रखा स्वयं को...
सदा सिखाया भ्रम से निकलो..
हर्षित मन में "मैं" दिखता हूँ..
मुझको अंदर में भी समझो..
जीवन प्रश्न हुआ जाता है..
आखिर क्या कुछ मर्म छिपा है..
आना-जाना, नहीं ठिकाना..
फिर क्यों माया में उलझा है...
खेल खेलना बड़ा जरुरी..
मगर नहीं लड़ना भिड़ना है..
अपनी पारी की गाथा का..
बस चर्चा कुछ दिन रहना है..
अनुभूति को पाया जिसने..
मूक हृदय बस मूक हो गया..
कैसे स्वाद बताये उसका..
जिसकी अगम बनी थी रसना...
चलो आज फिर बस पालन को..
लिखें पढ़े, कुछ खेले खेला..
नहीं रखें कुछ मन में बाकी..
यही कहे बस यहाँ सबेरा..
प्रभु के चरणो मे नतमस्तक हो
वही प्रभु का प्यारा है।
प्रभु की लीला अपरम पार
करो जीवन का उदार•••••••