अमर राणा सांगा..
अमर राणा सांगा..


रणभेरी जब जब गगन गूंजी
सिंह समान वह गरज उठा,
शत्रुओं में हा हा कार मचाकर
राणा छाती में उनके चढ़ गया।
एक नहीं सौ घाव सहे उसने
पर रण में हार न मानी,
स्वाभिमान की ज्वाला सीने में
हर सांस बनी बलिदानी।
एक हाथ, पांव, एक नेत्र गया
पर लक्ष्य पर दृष्टि उसने साधी,
शूरवीर था वह जन्मजात
हर रण में लड़कर जीती बाजी।
कौन कहे वह थका कभी.?
जीवन भर लड़ता वो रहा,
सत्य सनातन की जय बोलकर
इतिहास अमर वो कर गया।
खड़क और तलवारों को उसने
फौलाद से अपने मसल दिया,
आंखों में स्वप्न हिंद स्वराज का
कण कण लहू अपना दे गया।
चित्तौड़ का स्वाभिमान बना
राजपुताना की आन रहा,
वीरगति भी उसे वरदान लगी,
वह सिंह सनातन की शान रहा।
राणा वह था जो रुका नहीं
रण में पीछे कभी झुका नहीं,
कट गया घावों से भरा बदन
पर आन कभी गिरने दिया नहीं।
मातृभूमि की तिलक लगाए
वह सर्वोच्च अपना कर गया,
केसरी पताका फहराकर वो
जीवन को अपना यज्ञ कर गया।