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शशि कांत श्रीवास्तव

Abstract

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शशि कांत श्रीवास्तव

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अलविदा

अलविदा

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अलविदा कहते हैं उसे हम 

जो रहते नहीं हैं पास हमारे 

फिर करते हैं याद उनको सदा

क्योंकि जुड़ जाता है नाता


अनजाना सा उनसे 

अलविदा कहते हैं,

करते हैं हम उनका इंतजार 

पूर्ण खिले हुए चाँद की चाँदनी में 


मन के उपवन में

बिछा फूलों की चादर 

जो नहाई हुई है पूरी तरह 

शबनम में भीगी हुई

चाँदनी से पर।


दिवस के आगमन का

पैग़ाम आया 

चाँदनी भी चली गई

आँसुओं को छोड़कर। 


पर वो नहीं आये और 

हम उन्हें अलविदा

नहीं कह सके 

हम उन्हें अलविदा

नहीं कह सके।


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