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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

अलंकार

अलंकार

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जैसे नारी जेवरों से', करती श्रृंगार वैसे..

कविता अलंकार से, निखार पाती है..।

झूम-झूम घूम-घूम, शब्द-शब्द अर्थ-अर्थ..

रूपसी यों बार-बार, चमत्कार लाती है ।

उपमा में उपमेय, उपमान हों समान..

ऐसी भावसरिता में, कविता नहाती है ।

जहां उपमेय अपमान हों अभेद दोनों..

वहां मीत रूपक को देख मुस्कुराती है..।।


शब्द आये बार-बार, अर्थ हों अनेक जहां..

उसको यमक अलंकार जान लीजिये ।

एक शब्द एक बार, अर्थ हों अनेक किन्तु..

वहां श्लेष वाला उदगार मान लीजिए ।

एक वर्ण कई बार, कर रहा चमत्कार..

वहां अनुप्रास वाला, रस पान कीजिये ।

जनु जानौ मनु मानौ, वाचक प्रयोग दिखे

वहाँ उतप्रेक्षा निखार ठान लीजिये ।।



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