अलग
अलग
है अलग तू सुन अपने मन की,
कर वही जो मर्ज़ी है अपनी।
तुझे पता है क्या मंज़िल है तेरी,
खामोशियों के पीछे दबी उत्सुकता तेरी,
छूट न जाये कहीं डोरी संघर्ष की।
है अलग तू सुन अपने मन की,
कर वही जो मर्ज़ी है अपनी।
न फंस मोह माया में उलझकर,
लोभ, क्रोध का घड़ा सर पर रख,
न पलट जो चुन ली राह लक्ष्य की।
है अलग तू सुन अपने मन की,
कर वही जो मर्ज़ी है अपनी।
