अकेला बैठा हूं
अकेला बैठा हूं
उमंगों की बस्ती मैं अकेला बैठा हूं
दर्द बाँटनेवाला कोई नहीं है
चुपचाप होकर बैठा हूं
दरिया की लहरें आती है
और चली जाती है
साहिल को ढूंढने
दरिया के बीच मे जाकर बैठा हूं
मैं अकेला बैठा हूं
जुबां पर जब भी सच होता है मेरे
कोई भी नही होता है पास मैं मेरे
अपना ही सच सबसे छुपाये बैठा हूँ
मैं अकेला बैठा हूं
शीशे मैं देखने वाले चेहरे तो बहुत है
अपने भीतर देखने वाला कोई नही है
अपने अंदर के आईने को तोड़कर बैठा हूं
मैं अकेला बैठा हूं
तरक्की के चक्कर में
परिवार के चक्कर में
मैं खुद ही चक्कर खाकर बैठा हूं
झूठ बोलने लगा इतना की
सच को भी झूठ बोल बैठा हूँ
मैं अकेला बैठा हूं।